27-05-72   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 रावण से विमुख और बाप के सम्मुख रहो

इस समय जो सभी बैठे हो, सभी की इस समय की स्टेज श्रेष्ठ स्टेज कहें वा अव्यक्त स्थिति कहें? इस समय सभी की अव्यक्त स्थिति है वा अब भी कोई व्यक्त भाव में स्थित है? कोई भी व्यक्त स्थिति में स्थित होकर बैठेंगे तो अव्यक्त मिलन वा अव्यक्त बोल को धारण नहीं कर सकेंगे। तो अव्यक्ति स्थिति में स्थित हो? जो नहीं हैं वो हाथ उठावें। अगर इस समय अव्यक्त स्थिति में स्थित हो, व्यक्त भाव के भान से परे हो; तो क्यों परे हो? सभी की एक ही अव्यक्त स्थिति क्यों बनी, कैसे बनी? अव्यक्त बापदादा के सामने होने कारण सभी की एक ही अव्यक्त स्थिति बन गई है। तो ऐसे ही अगर सदा अपने को बापदादा के सम्मुख समझ करके चलो तो क्या स्थिति होगी? अव्यक्त होगी ना। तो बापदादा के सदा सम्मुख रहने के बजाए बापदादा को अपने से अलग वा दूर क्यों समझ कर चलते हो? जैसे एक सीता का मिसाल सुनाते वा सुनते रहते हो कि सीता सदा किसके सम्मुख रहती थी -- राम के। सम्मुख अर्थात् स्थूल में सम्मुख नहीं लेकिन बुद्धि से सदा बापदादा के सम्मुख रहना है। बापदादा के सम्मुख रहना अर्थात् रावण माया से विमुख रहना है। जब माया के सम्मुख हो जाते हो तो बाप से बुद्धि विमुख हो जाती है। जो अति प्यारे ते प्यारा सम्बन्ध होता है उससे स्वत: ही सम्मुख ही बैठने-उठने, खाने-पीने, चलने अर्थात् सदा साथ का अनुभव होता है। तो क्या बापदादा के सदा सम्मुख नहीं रह सकते हो? अगर सदा सम्मुख रहेंगे तो सदा अव्यक्त स्थिति रहेगी। तो दूर क्यों हो जाते हो? क्या यह भी बचपन का खेल करते हो? कई ऐसे बच्चे होते हैं जो जितना ही मां-बाप पास में बुलाते हैं उतना ही नटखट होने कारण दूर भागते हैं। तो क्या यह अच्छा लगता है? सदा अपने को सम्मुख समझने से अपने को सदा आलमाइटी अथॉरिटी महसूस करेंगे। आलमाइटी अथॉरिटी के आगे और काई भी अथॉरिटी वार नहीं कर सकती है वा आलमाइटी अथॉरिटी कब भी हार नहीं खा सकते हैं। 

आज अल्पकाल की अथॉरिटी वाले भी कितने शक्तिशाली रहते हैं! तो आलमाइटी अथॉरिटी वाले तो सर्वशक्तिवान् हैं ना। सर्वशक्तियों के आगे अल्पकाल की शक्ति वाले भी सिर झुकाने वाले हैं। वार नहीं करेंगे लेकिन सिर झुकायेंगे। वार के बजाय बार-बार नमस्कार करेंगे। तो ऐसे अपने को आलमाइटी अथॉरिटी समझकर के फिर हर कदम उठाते हो? अपने को आलमाइटी अथॉरिटी समझना अर्थात् आलमाइटी बाप को सदा साथ रखना है। जैसे देखो, आजकल के भक्ति-मार्ग के लोगों को कौनसी अथॉरिटी है? शास्त्र की। उन्हों की बुद्धि में सदा शास्त्र ही रहेंगे ना। कोई भी काम करेंगे तो सामने शास्त्र ही लायेंगे, कहेंगे -- यह जो कर्म कर रहे हैं वह शास्त्र प्रमाण हैं। तो जैसे शास्त्र की अथॉरिटी वालों को सदा बुद्धि में शास्त्र का आधार रहता है अर्थात् शास्त्र ही बुद्धि में रहते हैं। उनके सम्मुख शास्त्र हैं, आप लोगों के सामने क्या है? आलमाइटी बाप। तो जैसे वह कोई भी कार्य करते हैं तो शास्त्र का आधार होने कारण अथॉरिटी से वही कर्म सत्य मानकर करते हैं। कितना भी आप मिटाने की कोशिश करो लेकिन अपने आधार को छोड़ते नहीं हैं। कोई भी बात में बार-बार कहेंगे कि शास्त्र की अथॉरिटी से हम बोलते हैं, शास्त्र कब झूठे हो ना सकें, जो शास्त्र में है वही सत्य है। इतना अटल निश्चय रहता है। ऐसे ही जो आलमाइटी बाप की अथॉरिटी है उसकी अथॉरिटी से सर्व कार्य हम करने वाले हैं - यह इतना अटल निश्चय हो जो कोई टाल ना सके। ऐसा अटल निश्चय है? सदैव अपनी अथॉरिटी भी याद रहे। कि दूसरे की अथॉरिटी को देखते हुए अपनी अथॉरिटी भूल जाती है? सभी से श्रेष्ठ अथॉरिटी के आधार पर चलने वाले हो ना। अगर सदैव यह अथॉरिटी याद रखो तो पुरूषार्थ में कब भी मुश्किल मार्ग का अनुभव नहीं करेंगे। कितना भी कोई बड़ा कार्य हो लेकिन आलमाइटी अथॉरिटी के आधार से अति सहज अनुभव करेंगे। कोई भी कर्म करने के पहले अथॉरिटी को सामने रखने से बहुत सहज जज कर सकते हो कि यह कर्म करें वा ना करें। सामने अथॉरिटी का आधार होने कारण सिर्फ उनको कॉपी करना है। कॉपी करना तो सहज होता है वा मुश्किल होता है? हां वा ना - उसका जवाब अथॉरिटी को सामने रखने से ऑटोमेटिकली आपको आ जाएगा। जैसे आजकल साईंस ने भी ऐसी मशीनरी तैयार की है जो कोई भी क्वेश्चन डालो तो उसका उत्तर सहज ही मिल आता है। मशीनरी द्वारा प्रश्न का उत्तर निकल जाता है, तो दिमाग चलाने से छूट जाते हैं। तो ऐसे ही ऑलमाइटी अथॉरिटी को सामने रखने से जो भी प्रश्न करेंगे उनका उत्तर प्रैक्टिकल में आपको सहज ही मिल जाएगा। सहज मार्ग अनुभव होगा। ऐसे सहज और श्रेष्ठ आधार मिलते हुए भी अगर कोई उस आधार का लाभ नहीं उठाते तो उसको क्या कहेंगे? अपनी कमजोरी। तो कमजोर आत्मा बनने के बजाय्य शक्तिशाली आत्मा बनो और बनाओ। अपने को ऑलमाइटी अथॉरिटी समझने से 3 मुख्य बातें ऑटोमेटिकली अपने में धारण हो जाएंगी। वह तीन बातें कौनसी? 

बुद्धि की ड्रिल करने से सुना हुआ ज्ञान दुहराते हो। यह भी अच्छा है, इससे भी शक्ति बढ़ती है। कोई भी अथॉरिटी वाले होते हैं, साधारण अथॉरिटी वालों में भी 3 बातें होती हैं -- एक निश्चय, दूसरा नशा और तीसरा निर्भयता। यह तीन बातें अथॉरिटी वाले रॉंग होते भी, अयथार्थ होते भी कितना दृढ़ निश्चयबुद्धि होकर बोलते वा चलते हैं! जितना ही निश्चय होगा उतना निर्भय होकर नशे में बोलते हैं। ऐसे ही देखो, जब आप सभी ऑलमाइटी अथॉरिटी हो, सभी से श्रेष्ठ अथॉरिटी वाले हो; तो कितना नशा रहना चाहिए और कितना निश्चय से बोलना चाहिए! और फिर निर्भयता भी चाहिए। कोई भी किस भी रीति से हार खिलाने की कोशिश करे लेकिन निर्भयता, निश्चय और नशे के आधार पर वब हार खा सकेंगे? नहीं, सदा विजयी होंगे। विजयी ना होने का कारण इन तीन बातों में से कोई बात की कमी है, इसलिए विजयी नहीं बन पाते हो। तो यह तीनों ही बातें अपने आप में देखो कि कहां तक हर कदम उठाने में यह बातें प्रैक्टिकल में हैं? एक होता है टोटल नॉलेज में, बाप में निश्चय। लेकिन कोई भी कर्म करते, बोल बोलते यह तीनों ही क्वॉलिफि- केशन रहें। वह प्रैक्टिकल की बात दूसरी होती है। और जब यह तीनों बातें हर कर्म, हर बोल में आ जाएंगी तब ही आपके हर बोल और हर कर्म ऑलमाइटी अथॉरिटी को प्रत्यक्ष करेंगे। अभी तो साधारण समझते हैं। इन्हों की अथॉरिटी स्वयं ऑलमाइटी बाप है - यह नहीं अनुभव करते हैं। यह अनुभव तब करेंगे जब एक सेकेण्ड भी अथॉरिटी को छोड़ करके कोई भी कर्म नहीं करेंगे वा बोल नहीं बोलेंगे। अथॉरिटी को भूलने से साधारण कर्म हो जाता है। तो अन्य लोगों को भी साधारण, जैसे अन्य लोग थोड़ा-बहुत कर रहे हैं, वैसे ही अनुभव होता है। जो आते भी हैं तो रिजल्ट में क्या कहते हैं? आप लोगों की विशेषता को वर्णन करते हुए साथ में विशेषता के साथ साधारणता भी ज़रूर वर्णन करते रहते हैं - और संस्थाओं में भी ऐसे हैं, जैसे वह कर रहे हैं, वैसे यह भी कर रहे हैं। तो साधारणता हुई ना। एक-दो बात विशेष लगती है लेकिन हर कर्म, हर बोल विशेष लगे जो और कोई से तुलना ना कर सकें वह स्टेज तो नहीं आई है ना। ऑलमाइटी की कोई भी एक्टिविटी साधारण कैसे हो सकती? परमात्मा के अथॉरिटी और आत्माओं के अथॉरिटी में तो रात-दिन का फर्क होना चाहिए! ऐसा अपने आप मे अर्थात् अपने बोल और कर्म में अन्य आत्माओं से रात-दिन का अन्तर महसूस करते हो? रात-दिन का अन्तर इतना होता है जो कोई को समझाने की आवश्यकता नहीं होती कि यह अन्तर है, ऑटोमेटिकली समझ जाएंगे -- यह रात, यह दिन है। तो आप भी जबकि ऑलमाइटी अथॉरिटी के आधार से हर कर्म करने वाले हो, हर डायरेक्शन प्रमाण चलने वाले हो; तो अन्तर रात-दिन का दिखाई देना चाहिए। ऐसे अन्तर हो जो आने से ही समझ लें कि कोई साधारण स्थान नहीं, इन्हों की नॉलेज साधारण नहीं। ऐसा जब प्रभाव पड़े तब समझो अपनी अथॉरिटी को प्रत्यक्ष कर रहे हैं। जैसे शास्त्रवादियों के बोल दिखाई देते हैं कि इन्हों को शास्त्र की अथॉरिटी है, वैसे आपके हर बोल से अथॉरिटी प्रसिद्ध होनी चाहिए। फाइनल स्टेज तो यही है ना। बोल से, चेहरे से, चलन से, सभी से अथॉरिटी का मालूम पड़ना चाहिए। आजकल के जमाने में अगर छोटी-मोटी अथॉरिटी वाले ऑफीसर अपने कर्त्तव्य में जब होते हैं तो कितना अथॉरिटी का कर्म दिखाई देता है। नशा रहता है ना। उसी नशे से हर कर्म करते हैं। वे हद के शास्त्रों की अथॉरिटी हैं। यह है अलौकिक अविनाशी अथॉरिटी। 

ऐसे अथॉरिटी बाप को सम्मुख रख अथॉरिटी से चलने वाली आत्माओं को नमस्ते